realshayari

ज़रा तिरछी पड़ने लगी है किरन अब
ज़रा सर्दियाँ सब्ज़ पत्तों में उतरीं
ज़रा पड़ रही हैं कहीं और ही अब
जवाँ हुस्न की बुल्हवस वो निगाहें
तसव्वुर वो माज़ी का धुँधला हुआ कुछ
न गलियों में अब हैं वो बेबाक फेरे
उन्हीं दिलजलों के जिनके सरों में

अजब एक सौदा था रुसवाइयों का
वो ख़ामोश नज़रों में पूरा फ़साना
वही आमदो-रफ़्त ख़्वाबों का शब में
वही जागना और कभी सो भी जाना

वो तनहा सा कमरा ,
धड़कते हुएदो जवाँ साल दिल और
वो रह रह के इक ख़ौफ़ सा दस्तकों का
ये लम्हों का भी था अजब एक सैलाब
जो चुनते हुए सख्त़ बाँहों में अपनी
सभी नर्मियों को उठा ले गया यूँ
पता आईने को भी ये चल न पाया
इन्ही तंग गलियो की वीरानियों में

न जाने कहाँ से
उभरने लगे कितने मक़रूह चेहरे
फ़सुर्दा से चेहरे,थके-हारे चेहरे
इन्हें देखने की कहाँ,कब थी फ़ुर्सत
ये तब भी वहीं थे ,ये अब भी वहीं है
बिना कोई आहट, बिना कोई हलचल
ख़मोशी से कोई तवक़्क़ो लगाए हुए
ज़िंदगी से

के शायद इन्हें ज़िन्दगी अपने दामन से
दो-चार मुरझाए पल ही सही
दे के अपनी सख़ावत पे कुछ नाज़ कर ले
लताफ़त से इनको भला क्या है लेना
तमीज़ इनको क्या हुस्न की वुसअतों की
इन्हें ख़्वाब की पुरकशिश वादियों से
भला क्या है मतलब

वजूद इनका है कुछ तो है सिर्फ़ इतना
के सारे मनाज़िर को गढ़ते रहें ये
नज़र पर न आएँ
मगर आज
मगर आज जब
वक़्त का एक ख़ामोश सैलाब
चुनते हुए सख्त़ बाँहों में अपनी
सभी नर्मियों को उठा ले गया यूँ
मगर आज

जब ताब मद्धम हुई बेकराँ इस नज़र की
बहुत साफ़ आने लगे हैं नज़र
कितने मुब्हम से चेहरे
के जो कितनी सदियों से
क़ुर्बान होते रहे लम्हा लम्हा
के कोई समेटे उनकी सारी लताफ़त
उनको वहशी बना दे
कोई आए और ज़र्फ़ उनका उठा ले
उनको कमज़र्फ़ कर दे
कोई उनके लाग़र बदन सेनोच ले

जो हैं कपड़े
बरहना उनको कर दे
कोई आए और रहनुमा उनका बनके
ग़र्क़ दरिया में कर दे
के जब आज
इस ज़िन्दगी के बदन से
धूप की सारी किरनें
चंद लम्हों में हैं ढलनेवाली

न जाने भला क्यूँ
बहुत साफ़ आने लगे हैं नज़र ये
गुमशुदा कितने चेहरे
के हो वक़्ते-आख़िर
उसी वक़्त जैसे अचानक
माशूक़ की इक जवाँ याद आए..

By Real Shayari

Real Shayari Ek Koshish hai Duniya ke tamaan shayar ko ek jagah laane ki.

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