Realshayari

खोल दे पंख मेरे परिंदा कहता है अभी और उड़ान वाकी है
जमीं नहीं है मंजिल मेरी अभी पूरा आसमाँ वाकी है
लहरों की ख़ामोशी को समंदर की वेवसी मत समझ नादाँ
जितनी गहराई अंदर है उतना बाहर तूफान वाकी है

खोल दे पंख मेरे परिंदा कहता है अभी और उड़ान वाकी है

उलझी शाम को पाने की ज़िद न करो,

जो ना हो अपना उसे अपनाने की ज़िद न करो,

इस समंदर में तूफ़ान बहुत आते है,

इसके साहिल पर घर बनाने की ज़िद न करो.

 

मैने सब कुछ पाया है बस तुझको पाना बाकी है,

कुछ कमी नहीं जिंदगी में बस तेरा आना बाकी है।

अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे ,

फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे ,

ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे ,

अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।

 

उलझी शाम को पाने की ज़िद न करो;

जो ना हो अपना उसे अपनाने की ज़िद न करो;

इस समंदर में तूफ़ान बहुत आते है;

इसके साहिल पर घर बनाने की ज़िद न करो

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By Real Shayari

Real Shayari Ek Koshish hai Duniya ke tamaan shayar ko ek jagah laane ki.

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