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शाम सूरज को ढलना सिखाती है
शमां परवाने को जलना
गिरने पर चोट तो जरूर लगती है
लेकिन ठोकर ही इंसान को चलना सिखाती है |

By Real Shayari

Real Shayari Ek Koshish hai Duniya ke tamaan shayar ko ek jagah laane ki.

One thought on “शाम सूरज को ढलना सिखाती है”

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