ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है | मिर्ज़ा ग़ालिब

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है

निगाह दिल से तिरे सुर्मा-सा निकलती है

फ़शार-ए-तंगी-ए-ख़ल्वत से बनती है शबनम

सबा जो ग़ुंचे के पर्दे में जा निकलती है

पूछ सीना-ए-आशिक़ से आब-ए-तेग़-ए-निगाह

कि ज़ख्म-ए-रौज़न-ए-दर से हवा निकलती है

ब-रंग-ए-शीशा हूँ यक-गोश-ए-दिल-ए-ख़ाली

कभी परी मिरी ख़ल्वत में निकलती है

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है | मिर्ज़ा ग़ालिब

By Real Shayari

Real Shayari Ek Koshish hai Duniya ke tamaan shayar ko ek jagah laane ki.

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