मैं ज़िन्दा हूँ यह मुश्तहर कीजिए

मेरे क़ातिलों को ख़बर कीजिए ।

ज़मीं सख़्त है आसमां दूर है

बसर हो सके तो बसर कीजिए ।

सितम के बहुत से हैं रद्द-ए-अमल

ज़रूरी नहीं चश्म तर कीजिए ।

वही ज़ुल्म बार-ए-दिगर है तो फिर

वही ज़ुर्म बार-ए-दिगर कीजिए ।

कफ़स तोड़ना बाद की बात है

अभी ख्वाहिश-ए-बाल-ओ-पर कीजिए ।

By Real Shayari

Real Shayari Ek Koshish hai Duniya ke tamaan shayar ko ek jagah laane ki.

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