लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले | मिर्ज़ा ग़ालिब

 

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले

‘ग़ालिब’ ये ख़ौफ़ है कि कहाँ से अदा करूँ

 

ख़ुश वहशते कि अर्ज़-ए-जुनून-ए-फ़ना करूँ

जूँ गर्द-ए-राह जामा-ए-हस्ती क़बा करूँ

 

आ ऐ बहार-ए-नाज़ कि तेरे ख़िराम से

दस्तार गर्द-ए-शाख़-ए-गुल-ए-नक़्श-ए-पा करूँ

 

ख़ुश ऊफ़्तादगी कि ब-सहरा-ए-इन्तिज़ार

जूँ जादा गर्द-ए-रह से निगह सुर्मा-सा करूँ

 

सब्र और ये अदा कि दिल आवे असीर-ए-चाक

दर्द और ये कमीं कि रह-ए-नाला वा करूँ

 

वो बे-दिमाग़-ए-मिन्नत-ए-इक़बाल हूँ कि मैं

वहशत ब-दाग़-ए-साया-ए-बाल-ए-हुमा करूँ

 

वो इल्तिमास-ए-लज्ज़त-ए-बे-दाद हूँ कि मैं

तेग़-ए-सितम को पुश्त-ए-ख़म-ए-इल्तिजा करूँ

 

वो राज़-ए-नाला हूँ कि ब-शरह-ए-निगाह-ए-इज्ज़

अफ़्शाँ ग़ुबार-ए-सुर्मा से फ़र्द-ए-सदा करूँ

 

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले | मिर्ज़ा ग़ालिब

By Real Shayari

Real Shayari Ek Koshish hai Duniya ke tamaan shayar ko ek jagah laane ki.

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