Mirza Ghalib, Shayarक्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़ | मिर्ज़ा ग़ालिब by Real Shayari · 1 week ago · no comment 0 shares क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़ | मिर्ज़ा ग़ालिब क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़ क्या नहीं है मुझे ईमान अज़ीज़ दिल से निकला पे न निकला दिल से है तिरे तीर का पैकान अज़ीज़ ताब लाए ही बनेगी ‘ग़ालिब’ वाक़िआ सख़्त है और जान अज़ीज़ क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़ | मिर्ज़ा ग़ालिब AahaT sī koī aa.e to lagtā hai ki tum ho Share this:TwitterFacebookLike this:Like Loading... क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़ मिर्ज़ा ग़ालिब PREVIOUSअक्सर लगता है कि सब कुछ हो गया बर्बाद | Real Shayari 1 week ago NEXTबहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है | मिर्ज़ा ग़ालिब 1 week ago Related Articlesसीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम | Mirza Ghalib1 day ago kisi ko de ke dil koi nawa-sanj-e-fughan kyun ho | Mirza Ghalib3 days ago रौंदी हुई है कौकबा-ए-शहरयार की | मिर्ज़ा ग़ालिब1 week ago Leave a Reply Cancel reply Δ