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आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे | मिर्ज़ा ग़ालिब

by Real Shayari   ·  1 hour ago   ·  

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे | मिर्ज़ा ग़ालिब   आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे   हसरत ने ला रखा तिरी बज़्म-ए-ख़याल में गुल-दस्ता-ए-निगाह सुवैदा कहें जिसे   फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा अफ़्सून-ए-इंतिज़ार तमन्ना कहें जिसे   सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से डालिए वो एक मुश्त-ए-ख़ाक कि सहरा कहें जिसे   है ...

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याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे | मिर्ज़ा ग़ालिब

by Real Shayari   ·  2 hours ago   ·  

याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे | मिर्ज़ा ग़ालिब   याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे सुब्हा-ए-ज़ाहिद हुआ है ख़ंदा ज़ेर-ए-लब मुझे   है कुशाद-ए-ख़ातिर-ए-वा-बस्ता दर रहन-ए-सुख़न था तिलिस्म-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद ख़ाना-ए-मकतब मुझे   या रब इस आशुफ़्तगी की दाद किस से चाहिए रश्क आसाइश पे है ज़िंदानियों की अब मुझे   तब्अ' है मुश्ताक़-ए-लज़्ज़त-हा-ए-हसरत क्या करूँ आरज़ू से है शिकस्त-ए-आरज़ू मतलब मुझे   दिल लगा कर आप भी ...

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लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले | मिर्ज़ा ग़ालिब

by Real Shayari   ·  3 hours ago   ·  

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले | मिर्ज़ा ग़ालिब   लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले 'ग़ालिब' ये ख़ौफ़ है कि कहाँ से अदा करूँ   ख़ुश वहशते कि अर्ज़-ए-जुनून-ए-फ़ना करूँ जूँ गर्द-ए-राह जामा-ए-हस्ती क़बा करूँ   आ ऐ बहार-ए-नाज़ कि तेरे ख़िराम से दस्तार गर्द-ए-शाख़-ए-गुल-ए-नक़्श-ए-पा करूँ   ख़ुश ऊफ़्तादगी कि ब-सहरा-ए-इन्तिज़ार जूँ जादा गर्द-ए-रह से निगह सुर्मा-सा करूँ   सब्र और ये अदा कि दिल आवे असीर-ए-चाक दर्द और ...

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ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद | मिर्ज़ा ग़ालिब

by Real Shayari   ·  3 hours ago   ·  

ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद | मिर्ज़ा ग़ालिब ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद वगर्ना हम तो तवक़्क़ो ज़ियादा रखते हैं   तन-ए-ब-बंद-ए-हवस दर नदादा रखते हैं दिल-ए-ज़-कार-ए-जहाँ ऊफ़्तादा रखते है   तमीज़-ए-ज़िश्ती-ओ-नेकी में लाख बातें हैं ब-अक्स-ए-आइना यक-फ़र्द-ए-सादा रखते हैं   ब-रंग-ए-साया हमें बंदगी में है तस्लीम कि दाग़-ए-दिल ब-जाबीन-ए-कुशादा रखते हैं   ब-ज़ाहिदाँ रग-ए-गर्दन है रिश्ता-ए-ज़ुन्नार सर-ए-ब-पा-ए-बुत-ए-ना-निहादा रखते हैं   मुआफ़-ए-बे-हुदा-गोई हैं नासेहान-ए-अज़ीज़ दिल-ए-ब-दस्त-ए-निगारे नदादा रखते हैं   ब-रंग-ए-सब्ज़ा अज़ीज़ान-ए-बद-ज़बान यक-दस्त हज़ार तेग़-ए-ब-ज़हर-आब-दादा रखते ...

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फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर | मिर्ज़ा ग़ालिब

by Real Shayari   ·  3 hours ago   ·  

फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर | मिर्ज़ा ग़ालिब   फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर है दाग़-ए-इश्क़ ज़ीनत-ए-जेब-ए-कफ़न हुनूज़   है नाज़-ए-मुफ़्लिसाँ ज़र-ए-अज़-दस्त-रफ़्ता पर हूँ गुल-फ़रोश-ए-शोख़ी-ए-दाग़-ए-कोहन हुनूज़   मै-ख़ाना-ए-जिगर में यहाँ ख़ाक भी नहीं ख़म्याज़ा खींचे है बुत-ए-बे-दाद-फ़न हुनूज़   जूँ जादा सर-ब-कू-ए-तमन्ना-ए-बे-दिली ज़ंजीर-ए-पा है रिश्ता-ए-हुब्बुल-वतन हुनूज़   फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर | मिर्ज़ा ग़ालिब

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अपने दीवार-ओ-दर से पूछते हैं | राहत इंदौरी

by Real Shayari   ·  1 day ago   ·  

अपने दीवार-ओ-दर से पूछते हैं | राहत इंदौरी अपने दीवार-ओ-दर से पूछते हैं घर के हालात घर से पूछते हैं क्यूँ अकेले हैं क़ाफ़िले वाले एक इक हम-सफ़र से पूछते हैं क्या कभी ज़िंदगी भी देखेंगे बस यही उम्र-भर से पूछते हैं जुर्म है ख़्वाब देखना भी क्या रात-भर चश्म-ए-तर से पूछते हैं ये मुलाक़ात आख़िरी तो नहीं हम जुदाई ...

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जो ये हर-सू फ़लक मंज़र खड़े हैं | राहत इन्दोरी

by Real Shayari   ·  1 day ago   ·  

जो ये हर-सू फ़लक मंज़र खड़े हैं | राहत इन्दोरी जो ये हर-सू फ़लक मंज़र खड़े हैं न जाने किस के पैरों पर खड़े हैं तुला है धूप बरसाने पे सूरज शजर भी छतरियाँ ले कर खड़े हैं उन्हें नामों से मैं पहचानता हूँ मिरे दुश्मन मिरे अंदर खड़े हैं किसी दिन चाँद निकला था यहाँ से उजाले आज ...

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सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर | मिर्ज़ा ग़ालिब

by Real Shayari   ·  1 day ago   ·  

सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर | मिर्ज़ा ग़ालिब जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की नमक-पाश-ए-ख़राश-ए-दिल है लज़्ज़त ज़िंदगानी की कशाकश-हा-ए-हस्ती से करे क्या सई-ए-आज़ादी हुइ ज़ंजीर-ए-मौज-ए-आब को फ़ुर्सत रवानी की पस-अज़-मुर्दन भी दीवाना ज़ियारत-गाह-ए-तिफ़्लाँ है शरार-ए-संग ने तुर्बत पे मेरी गुल-फ़िशानी की न खींच ऐ सई-ए-दस्त-ए-ना-रसा ज़ुल्फ़-ए-तमन्ना को परेशाँ-तर है मू-ए-ख़ामा से तदबीर मानी की कहाँ हम ...