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ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है | मिर्ज़ा ग़ालिब

by Real Shayari   ·  10 hours ago   ·  

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है | मिर्ज़ा ग़ालिब ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है निगाह दिल से तिरे सुर्मा-सा निकलती है फ़शार-ए-तंगी-ए-ख़ल्वत से बनती है शबनम सबा जो ग़ुंचे के पर्दे में जा निकलती है न पूछ सीना-ए-आशिक़ से आब-ए-तेग़-ए-निगाह कि ज़ख्म-ए-रौज़न-ए-दर से हवा निकलती है ब-रंग-ए-शीशा हूँ यक-गोश-ए-दिल-ए-ख़ाली कभी परी मिरी ख़ल्वत में आ निकलती है ख़मोशियों में ...

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ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है | मिर्ज़ा ग़ालिब

by Real Shayari   ·  11 hours ago   ·  

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है | मिर्ज़ा ग़ालिब ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है निगाह दिल से तिरे सुर्मा-सा निकलती है फ़शार-ए-तंगी-ए-ख़ल्वत से बनती है शबनम सबा जो ग़ुंचे के पर्दे में जा निकलती है न पूछ सीना-ए-आशिक़ से आब-ए-तेग़-ए-निगाह कि ज़ख्म-ए-रौज़न-ए-दर से हवा निकलती है ब-रंग-ए-शीशा हूँ यक-गोश-ए-दिल-ए-ख़ाली कभी परी मिरी ख़ल्वत में आ निकलती है ख़मोशियों में ...

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हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर | मिर्ज़ा ग़ालिब

by Real Shayari   ·  12 hours ago   ·  

हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर | मिर्ज़ा ग़ालिब हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर इश्क़ का उस को गुमाँ हम बे-ज़बानों पर नहीं ज़ब्त से मतलब ब-जुज़ वारस्तगी दीगर नहीं दामन-ए-तिमसाल आब-ए-आइना से तर नहीं बाइस-ए-ईज़ा है बरहम-ख़ुर्दन-ए-बज़्म-ए-सुरूर लख़्त लख़्त-ए-शीशा-ए-ब-शिकास्ता जुज़ निश्तर नहीं दिल को इज़्हार-ए-सुख़न अंदाज़-ए-फ़तह-उल-बाब है याँ सरीर-ए-ख़ामा ग़ैर-अज़-इस्तिकाक-ए-दर नहीं हो गई है ग़ैर की ...

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मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है | Mirza Ghalib

by Real Shayari   ·  12 hours ago   ·  

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है | Mirza Ghalib मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है जिसे कहते हैं नाला वो उसी आलम का अन्क़ा है ख़िज़ाँ क्या फ़स्ल-ए-गुल कहते हैं किस को कोई मौसम हो वही हम हैं क़फ़स है और मातम बाल-ओ-पर का है वफ़ा-ए-दिलबराँ है इत्तिफ़ाक़ी वर्ना ऐ हमदम असर फ़रियाद-ए-दिल-हा-ए-हज़ीं का किस ने देखा है न लाई शोख़ी-ए-अंदेशा ...

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लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का | Mirza Ghalib

by Real Shayari   ·  12 hours ago   ·  

लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का | Mirza Ghalib लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का ज़ियारत-कदा हूँ दिल-आज़ुर्दगाँ का हमा ना-उमीदी हमा बद-गुमानी मैं दिल हूँ फ़रेब-ए-वफ़ा-ख़ुर्दगाँ का शगुफ़्तन कमीं-गाह-ए-तक़रीब-जूई तसव्वुर हूँ बे-मोजिब आज़ुर्दगाँ का ग़रीब-ए-सितम-दीदा-ए-बाज़-गश्तन सुख़न हूँ सुख़न बर लब-आवुर्दगाँ का सरापा यक-आईना-दार-ए-शिकस्तन इरादा हूँ यक-आलम-अफ़्सुर्दगाँ का ब-सूरत तकल्लुफ़ ब-मअ'नी तअस्सुफ़ 'असद' मैं तबस्सुम हूँ पज़मुर्दगाँ का लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का | Mirza Ghalib

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बुलाती है मगर जाने का नइं | राहत इंदौरी

by Real Shayari   ·  1 day ago   ·  

बुलाती है मगर जाने का नइं | राहत इंदौरी बुलाती है मगर जाने का नइं वो दुनिया है उधर जाने का नइं सितारे नोच कर ले जाऊँगा मैं ख़ाली हाथ घर जाने का नइं मिरे बेटे किसी से इश्क़ कर मगर हद से गुज़र जाने का नइं वो गर्दन नापता है नाप ले मगर ज़ालिम से डर जाने का ...

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सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम | Mirza Ghalib

by Real Shayari   ·  1 day ago   ·  

सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम | Mirza Ghalib सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम हैराँ किए हुए हैं दिल-ए-बे-क़रार के आग़ोश-ए-गुल कुशूदा बरा-ए-विदा है ऐ अंदलीब चल कि चले दिन बहार के यूँ बाद-ए-ज़ब्त-ए-अश्क फिरूँ गिर्द यार के पानी पिए किसू पे कोई जैसे वार के बाद-अज़-विदा-ए-यार ब-ख़ूँ दर तपीदा हैं नक़्श-ए-क़दम हैं हम कफ़-ए-पा-ए-निगार के हम मश्क़-ए-फ़िक्र-ए-वस्ल-ओ-ग़म-ए-हिज्र से 'असद' लाएक़ ...