एक नदिया है मज़बूरी की

एक नदिया है मज़बूरी की
उस पार हो तुम इस पार है हम
अब पार उतरना है मुश्किल
मुझे बेवस बेकल रहने दो
तुम भूल गए क्या गिला करे
तुम तुम जैसे थे हम जैसे नहीं
कुछ अश्क बहँगे याद में बस
अब दर्द का सावन रहने दो

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