ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद | मिर्ज़ा ग़ालिब
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद | मिर्ज़ा ग़ालिब ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद वगर्ना हम तो तवक़्क़ो ज़ियादा रखते हैं तन-ए-ब-बंद-ए-हवस दर नदादा रखते हैं दिल-ए-ज़-कार-ए-जहाँ ऊफ़्तादा रखते है तमीज़-ए-ज़िश्ती-ओ-नेकी…